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नेशनल एजु ट्रस्ट ऑफ इंडिया के सहयोग से HMV में वृक्षाबंधन एवं राखी सखी का आयोजन

जालंधर 07 अगस्त (धर्मेन्द्र सौंधी) : प्राचार्या डॉ. अजय सरीन के प्रेरणादायी नेतृत्व में हंसराज महिला महाविद्यालय में वृक्षाबंधन एवं राखी सखी का आयोजन नेशनल एजु ट्रस्ट ऑफ इंडिया के सहयोग से प्रेरणा पुंज में किया गया। यह आयोजन रक्षाबंधन के पावन पर्व को पर्यावरण संरक्षण, नारी सशक्तिकरण एवं संस्थान के प्रति कर्तव्यबोध से जोड़ता हुआ अत्यंत भावप्रवण रहा। इस वर्ष कार्यक्रम की थीम कर्तव्य बंधन रही, जो संस्था के प्रति हमारे कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को दर्शाती है। छात्राओं और शिक्षकों ने संकल्प लिया कि वे न केवल आपसी प्रेम और सहयोग को बनाए रखेंगे, बल्कि पर्यावरण और संस्था की गरिमा को भी सदैव ऊँचा रखेंगे। राखी सखी पहल के अंतर्गत छात्राओं ने एक-दूसरे को राखी बाँधकर मित्रता, सहयोग और आत्मिक जुड़ाव का संदेश दिया।

प्राचार्या डॉ. अजय सरीन ने वृक्षों को राखी बाँधकर पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया। उन्होंने शिक्षकों व छात्राओं को भी राखी बाँधी, यह दर्शाते हुए कि संस्था के प्रत्येक सदस्य से उनका स्नेह, विश्वास और उत्तरदायित्व का बंधन है। अपने संबोधन में डॉ. सरीन ने कहा, राखी केवल एक धागा नहीं, यह एक प्रतिबद्धता है, एक-दूसरे को सहेजने, संवारने और साथ बढने की। डिज़ाइन विभाग द्वारा डॉ. राखी मेहता के मार्गदर्शन में वृक्षों के लिए सुंदर एवं पर्यावरण-अनुकूल राखियाँ तैयार की गईं।

डॉ. उर्वशी ने इस अवसर पर एक भावनात्मक कविता का पाठ किया, जिसने सभी को भाव-विभोर कर दिया। इस अवसर पर उपस्थित प्रमुख शिक्षकों में डॉ. नवरूप, डॉ. सीमा मारवाहा, डॉ. वीना अरोड़ा, डॉ. अंजना भाटिया, डॉ. गगन, डॉ. साक्षी, तथा श्री रवि ने सक्रिय भागीदारी निभाई। कार्यालय अधीक्षकों में श्री पंकज, श्री रवि एवं मैडम सीमा जोशी भी विशेष रूप से उपस्थित रहे। इस आयोजन में आईआईसी (इंस्टिट्यूशन इनोवेशन काउंसिल) तथा प्राणीशास्त्र विभाग की भी सक्रिय सहभागिता रही, जिससे यह आयोजन बहु-विषयी सहयोग का प्रतीक बना। स्टूडेंट काउंसिल तथा इको क्लब की छात्राओं ने सुंदर हस्तनिर्मित राखियाँ और पर्यावरण जागरूकता संदेशों से आयोजन को जीवंतता प्रदान की। कॉलेज परिवार ने इस आयोजन में सहयोग हेतु श्री समर्थ शर्मा, सीईओ, नेशनल एजु ट्रस्ट ऑफ इंडिया का हार्दिक धन्यवाद किया। यह आयोजन यह संदेश देता है कि बंधनों की सुंदरता केवल धागों से नहीं, बल्कि मूल्यों, स्नेह, और सामूहिक उत्तरदायित्व से बनती है, एक-दूसरे के लिए, प्रकृति के लिए, और उस संस्था के लिए जिससे हम जुड़े हैं।

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