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माँ की खोज आत्मज्ञान की यात्रा

News24Punjab ( धर्मेन्द्र सौंधी) : संसार के हर शरीर ने माँ की कोख से जन्म लिया है पर सब माँओं की, सब पिताओं की परम माँ है वो जगत-जननी, वो एक माँ जिनको हम माँ वैष्णो, माँ काली और माँ सरस्वती के नाम से पहचानते हैं। वैष्णो देवी की गुफा में माँ अपने इन तीन रूपों को समेट कर स्थापित हुई और वहाँ अंतर्ध्यान हो गईं यानी छुप हमसे गईं । जैसे बचपन में बच्चे अपनी माँ के साथ लुकाछिपी का खेल खेलते हैं, जिसमे माँ छुप जाती है और बच्चा माँ को ढूँढता है; जब माँ मिलती है तो वो खुश हो जाता है।

ऐसे ही माँ वैष्णो देवी त्रिकुटा पर्वत पर गई और गुफा में छुप गई यानि स्थापित हो गयी, और हम सभी अपने बच्चों को कहा “बच्चे ! मुझको खोज, मुझको ढूँढ” । ये जीवन एक लुकाछिपी का खेल है जिसमे हमको अपनी परम-माँ को खोजना है और जिस जिस को माँ मिल जाती है वो खेल जीतता जाता है। माँ कहती है “ये खेल जीतने में तुझे जो मैं फल दूँगी, वो है मोक्ष, मुक्ति, इस जन्म मरण से तेरा निकल जाना होगा पर तुझे मुझे खोजने आना पड़ेगा” । पर माँ को खोजेें कैसे? माँ को खोजने के लिए तीसरी आँख चाहिए ! इन बाहरी आँखों से, जो माँ ने हमको दी है, संसार की माँ को खोजा जा सकता है । पर जगत-जननी को तीसरी आँख से ही खोजा जा सकता है क्योंकि माँ इस शरीर से पार हो गईं। माँ अशरीर में खो गई है तो माँ ने कहा की अब उसे पाने के लिए, खोजने के लिए, तीसरी आँख का इस्तेमाल करना होगा। शरीर की दो आँखें संसार के अंदर माया को खोजती हैं जो मोह और ममता में लिप्त है । पर जगत-जननी को ममतामयी कहते हैं यानी ममता यानी माया की माँ, संसार को जन्म देने वाली माँ। जो माँ शरीर को जन्म देती है उसे शरीर की आँखों से खोजा जा सकता है और उस खोजने में मौज आती है पर वो टेंपरेरी है इसलिए मौज फिर खो जाती है । जैसे-जैसे हम बड़े होते गए, अब हम अपनी संसार की माँ से दूर होते चले गए। और जगत जननी जो कि इस संसार की सारी माँओं की माँ है, वो कहती है तू मुझको खोज क्योंकि मैं तो आज भी तुझसे खेलना चाहती हूँ क्योंकि आज भी तू मेरे लिए बच्चा ही है चाहे तू सत्तर साल का है, अस्सी साल का है । तो अब जगत-जननी को और इंतज़ार मत कराओ और इस जनम को झोंक दो उसकी खोज में।

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