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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से बिधिपुर आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन

जालंधर 26 मई (हरजिंदर सिंह) : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से बिधिपुर आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम रखा गया। जिसमें साध्वी सुश्री पल्लवी भारती जी ने बताया कि एक शिष्य के जीवन में सबसे बड़ा सुख गुरु भक्ति होता है। जो शिष्य गुरु भक्ति की अवस्था प्राप्त करता है उसके जीवन में सदैव आनंद का वास हो जाता है। ‘गुरु भक्ति’उपासना की केवल एक पद्धति नहीं है। गुरु शिष्य संबंध की जानकारी भर नहीं है । इतिहास की कहानियों का पुलिंदा भी नहीं है। संतो और गुरु भक्तों द्वारा गाई गई महिमावान वाणियां भी नहीं है ।गुरु भक्ति एक आध्यात्मिक अवस्था है। हमारी देह में सात चक्र होते हैं ,जो ऊर्जा केंद्र भी कहलाते हैं। उन्हें में से छठा चक्र होता है ‘आज्ञा चक्र’। यह आज्ञा–चक्र त्रिकुटी पर स्थित होता है। यह दिव्यता का निवास स्थल माना जाता है। जिस समय पूर्ण गुरु ब्रह्मज्ञान की दीक्षा देते हैं, वे अपने तत्व स्वरूप को शिष्य के इसी आज्ञा चक्र में स्थापित कर देते हैं।

शिष्य की आत्म स्वरूप का भी यही ठिकाना होता है। इसलिए मस्तक के इसी स्थल पर गुरु शिष्य का शाश्वत मिलन होता है । यहां सद्गुरु अपने शिष्य के इतने निकट होते हैं जितना शिष्य का मन और चित्त भी उसके निकट नहीं होते । क्योंकि ये सब तो निम्न चक्रों में उलझे हुए होते हैं ।अपने मन और चित्त को ध्यान साधना द्वारा ऊपर उठाकर आज्ञा चक्र से जोड़ना और शाश्वत गुरु तत्व से मिलन करना–इसी अवस्था को ‘गुरु भक्ति’ कहते हैं। जब शिष्य की चेतना अपने गुरु तत्व से इस आज्ञा–चक्र में जुड़ जाती है, तब उसका चलना– फिरना,उठना–बैठना, सोचना–बोलना,हर क्रिया करना गुरु आज्ञा से ही संचालित होता है। इसी अवस्था में गुरु स्वेच्छा से आज्ञा दे पाते हैं और शिष्य आज्ञा को शिरोधार्य कर पाता है। इस अवस्था में गुरु शासन करते हैं और शिष्य यंत्र बन जाता है।

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